The recent Coke Studio video ‘Tu Jhoom’ https://www.youtube.com/watch?v=7D4vNcK6D38 leaves me with a torrent of unshed tears and मुकम्मल अटरिया is an insignificant personal corollary.
किस आस में बैठे हो
कौन तुम्हे समझाये;
छिन्न-भिन्न सब ताने-बाने,
निष्काम तकली खड़काये।
आँखों का सैलाब बवंडर,
जज़ीरा डूबता नहीं ।
गला दर्द से रुंध चुका है,
नश्तर चलता नहीं;
ढहता हुआ है खंडर तेरा,
क्यों लीपा-पोती फरमाये।
आस-पास की आस छोड़ रे,
अब दूर-सुदूर भग जाये।
आँख झपक और गांठ खोल,
उड़ डोर कहीं तो जाये।
बंजारों की दुनिया बंजर,
परिजन-साथी बस इक मंज़र।
रैन-बसेरा घर न तेरा,
काहे को तरसाये।
झीना हुआ पुलिन्दा बन्दे,
आसमान दर्शाये।
बहुत हुआ अब छोड़ यह तृष्णा,
मुकम्मल अटरिया न आये।
आश्ना-ए-राज़ ख़ामोशी मेरी,
नाहक जिरह कराये।