(1)
आज सारे कोदंडधारी राम, सबके सब,
स्वर्णमृगों के पीछे गए, और लौटे नहीं,
सारे के सारे लक्ष्मण रावण से मिल
गए, और रेखा खींची नहीं।
सारे जटायु सीताओं की रक्षा में,
अनगिनत रावणों के हाथों
शहीद हो गए कट-कट कर ध्वस्त हो गये।
शेष रह गए हैं अब
बेशुमार सम्पाती
जो सूर्य की ओर, चार वर्षों में
केवल, चार कदम चल पाये, और
सत्य पर लगे स्वर्ण के ढक्कन से
अभिभूत होकर, उसी से चिपक गए,
फिर उन्होंने अपने चमचों से
अपनी चार-कदमी उड़ान के गीत गावये।
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