Archive for February, 2015

19
Feb
15

वास्तविक्ता

ठहरी हुई ज़िंदगी की गोद में,
दौड़ते वक़्त को सीने से लगाए,
निस्तब्ध हूँ मैं आज.

कफ़न में संजोए ख्वाबों के बादल लिए,
इक आसमाँ की तलाश में,
बेसुकून हूँ मैं आज.

जाने किस के आशियाने में,
अर्सों से वजूद ढूँढता,
बेघर हूँ मैं आज.

कंधों पर ताने उठाए,
लहू के कतरे निगलता,
अधमरा हूँ मैं आज.

सर्द हवाओं में,
खुद के अफ़साने लिखता,
बेहिसाब चल रहा हूँ मैं आज.

खुली आँखों से ख़ाक सींचता,
चेहरे पर नकाब लगाए,
बेशर्म हो गया हूँ मैं आज.

चौराहों और नुक्कड़ों पर,
सरेआम
खुद को बेच रहा हूँ मैं आज.




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