मज़बूर हूँ मैं वक़्त के तकाज़े से
मरदूद नोटों के तिलिस्मी आने-जाने से,
दिलोदिमाग के अंदर की चीखें निकल नहीं रहीं
हम खफ़ा हैं खुद अपनी
हयात से.
खंज़र से ज़्यादा नुकीले शब्दों ने
ज़हन को छलनी कर दिया,
फिर हमारी धात्री ने अपना
काम करवा के
नाकामियत की
माला से सजा दिया.